18 वीं शताब्दी के Mysore के शासक Tipu Sultan के व्यक्तित्वा की आलोचना Prejudiced Historians के द्वारा लगातार की जाती रही है. अक्सर उन्हें अत्याचारी(Persecutors) के रूप में Publicized किया जाता रहा है, और इससे भी अधिक दु:ख की बात यह है कि उन्हें कट्टर मुस्लिम शासक कहा जाता है. यह आलोचना करने के लिए कुछ ऐसी घटनाओं का प्रयोग किया जाता है, जिनमें ऐसे लोगों को सजा दी गई थीं जिन्होंने सामूहिक रूप से Tipu Sultan के विरुद्ध British साम्राज्यवादी शासकों (Governors) का साथ दिया था.
इस तरह का अधिकतर प्रयास उन इतिहासकारों (Historians) के काम का रहा है जो भारत में मुस्लिम शासक का Negative चित्रण (Delineation) करने पर आमादा रहे हैं. इसलिए अपने राजनैतिक (Political) शत्रुओं के विरुद्ध कुछ दण्डात्मक घटनाएँ, कुछ शासकों के इतिहास को सांप्रदायिक बनाने और कुछ ग़ैर मुस्लिम जनता और ग़ैर मुस्लिम शासकों को पीड़ित के रूप में चित्रित करने के लिए आसान हथियार मिल जाता है. इतिहास लेखन में इस तरह की अधिकतर कोशिशों के पीछे British साम्राज्यवादी शासकों कि कृपा रही है जो “ बांटो और राज करो ” की निति पर चल रहे थे, ताकि वे अपनी सत्ता को अधिक दिनों तक जरी रख सकें.
Tipu Sultan और उनके पिता Hyder Ali चित्रण कि इस तरह कि कोशिश के प्रमुख शिकार रहे हैं. British शासक अपने Powerful शत्रुओं के विरुद्ध खुला द्वेष (Hatred) रखते थे, जिन्होंने पहले Mysore War (1767) में, मद्रास (Chennai) में स्थित अंग्रेजों के गढ़ Fort St. Jorge तक पिछा किया था. लेकिन एक धोखापूर्ण संधि न होती तो South में British शासक समाप्त हो जाता. स्पष्ट रूप से इन पराजयों (Defeat) ने अंग्रेजों को अपने द्वेष फ़ैलाने वाले Agenda को अधिक जोश के साथ लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हें यह प्रयास करने का अवसर भी मिला कि वह एक हिन्दू Majority वाले क्षेत्र की जनता में एक मुस्लिम शासक के प्रति घृणा का प्रचार करने लगे. हालाँकि वह 18 वीं सदी में तुरंत प्रभाव से अपनी इस योजना में सफल नहीं हो सके, लेकिन सांप्रदायिक (Communal ) बना दिए गए. इतिहास की धुंध सदियों तक बुरी तरह छायी रही. सन् 80th के दशक के बाद कुछ भगवा (Saffron) इतिहासकारों के उदय के परिणाम स्वरुप इस तरह कि विभेदकारी व्याख्याओं (Divisive Explanations) के बढ़ते हुए विचारों का उद्देश्य मुख्य धारा कि Media और Textbooks में कुछ शासकों कि छवी को दागदार करना था. Tipu Sultan के संदर्भ में अंतिम दो दशकों के दौरान इस तरह की अधिकतर कोशिशें यदि सफल रही तो इसमें आश्चर्य कि बात नहीं.
आश्चर्यजनक बात यह है कि ऐसी आवाजें उठ रही है जिसमें India के Freedom के लिए जिन लोगों ने युद्ध किया उनमें Tipu Sultan का नाम सम्मिलित करने पर विरोध हो रहा है. Tipu Sultan उन योद्धाओं के बीच सबसे अधिक Powerful थें क्योंकि उन्होंने केवल उपमहाद्वीप (Subcontinent) से अंग्रेजों को निकलने के लिए युद्ध नहीं किया बल्कि अंग्रेजों से इस देश को Independent रखने के लिए अपनी जान भी दे दी. इतना ही नहीं, बल्कि Tipu Sultan इस बात पर Agree रहे कि अंग्रेज अपने पास उनके दो बेटों को तब तक बंधक (Mortgage) के रूप में रखें, जब तक कि सन्धि के प्रयासों के तहत सन् 1793 के Third Mysore War के जुर्माना के तौर पर वह 2.30 करोड़ अदा न कर दे, जिनमें अंग्रेज भरी पड़ गए थे. उन्होंने यह Amount किस्तों में जमा की और मद्रास (Chennai) से अपने बेटों को वापस लाये. चूँकि उनकी प्रजा इस तरह कि क्षतिपूर्ति भरने के लिए Agree रही और अपने राजा के विरुद्ध विद्रोह नहीं किया तो यह उनके प्रति वफ़ादारी (Faithfulness) का स्पष्ट सबूत (Proof) है.
इसमें संदेह नहीं कि Islamic परम्पराएँ Tipu Sultan के लिए महत्वपूर्ण थीं. उनके देश को ‘सल्तनत-ए-खुदादाद’ अथवा ‘अल्लाह द्वारा प्रदान की गयी सरकार’ कहा जाता है. लेकिन इस बात में भी उसी तरह संदेह नहीं होना चाहिए कि वह धार्मिक सह-अस्तित्व में उत्साहपूर्वक विश्वास करने वाले थे और उन्होंने अपनी प्रजा के प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण के लिए Struggle किया चाहे वह मुस्लमान हो या हिन्दू या मस्जिद हो या मंदिर. उन्होंने अपने प्रशासन में न केवल हिन्दुओं को भर्ती किया बल्कि कुछ प्रमुख हिन्दुओं को अपने दरबार में High Positions पर रखा. उन्होंने पुरनय्या को अपना दिवान (Minister) नियुक्त किया और कृष्णाराव को वित्तमंत्री (Finance Minister) नियुक्त किया. शमा राव Post और Police के Incharge नियुक्त हुए. श्री निवास राव मद्रास (Chennai) में, अप्पा राव Pune में और मूलचंद्र Delhi में राजदूत (Ambassador) नियुक्त हुए, उनके Personal Attendant सुब्बा राव थे. उनके Trusted लोगों में नायक राव और नायक संगाना थे. उनके Accountant नारनय्या थे और नागप्पय्या कूर्ग के Salar, हरी सिंह सेना की टुकड़ी के Commander थे. शिवाजी उनकी Three Thousand घुड़सवार सेना के Commander थे. इससे स्पष्ट है कि कोई भी राजा, जो अपने से अन्य धर्म के लोगों का दमन करता हो. वह उसी Community के सदस्यों को इतनी बड़ी संख्या में और इस तरह के मुख्य पदों पर नियुक्ति को सहन नहीं कर सकता.
Tipu Sultan द्वारा मंदिरों को दिए जाने वाले उपहारों को भी विस्तापूर्वक बताया जा सकता है लेकिन यह छोटा-सा लेख इतने विस्तार को सहन नहीं कर सकता. यह कहना पर्याप्त होगा कि Tipu Sultan ने यह काम अपनी धर्मनिरपेक्षता प्रदर्शित करने के लिए नहीं किया था क्योंकि Secularism की धारणाएं अभी तक प्रचलित नहीं हुई थीं और न तो ऐसी धारणाओं के प्रदर्शन कि आवश्यकता थी. यह सब एक शासक द्वारा अपनी प्रजा को खुश रखने कि योजना का अंग था और इसका उद्देश्य यह भी था कि परम्परागत रूप से जिस चीज का उन्होंने प्रण किया था उससे वह विचिलित नहीं होना चाहते थे.
" अपने पैरों पर खड़े रहते हुए मरना,
घुटने टेक कर जीने से कहीं बेहतर है "
Related Post: Tipu Sultan एक राष्ट्रप्रेमी Part-2 घुटने टेक कर जीने से कहीं बेहतर है "
अगर यह Article आपको अच्छा लगे तो Comment के माध्यम से
हमे बताने की कोशिस जरुर करें.
0 comments:
Post a Comment